मंदिरों में चढ़ावा आता है लेकिन मस्जिदों में नहीं, यही वक्फ बाई यूजर है’, SC में सिब्बल ने बाबरी का भी किया जिक्र

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है. मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ इस बात पर विचार करेगी कि मामले पर अंतिम निर्णय आने तक संशोधित कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाई जानी चाहिए या नहीं. सीजेआई के साथ जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह दूसरे जज हैं. दोनों पक्ष अपनी दलीलें अदालत के किसी अंतरिम निर्णय पर पहुंचने से पहले पेश करेंगे. मुस्लिम पक्ष ने पांच वकीलों के नाम तय किए हैं- कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, राजीव धवन, सलमान खुर्शीद और हुजैफा अहमदी. वक्फ कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं के नोडल वकील एजाज मकबूल होंगे. कानून का समर्थन करने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से संभावित वकीलों में राकेश द्विवेदी, मनिंदर सिंह, रंजीत कुमार, रविंद्र श्रीवास्तव और गोपाल शंकर नारायण शामिल हो सकते हैं. नोडल वकील के रूप में विष्णु शंकर जैन की सेवाएं ली जा रही हैं सिब्बल- 2025 का कानून पुराने कानून से बिल्कुल अलग है. इसमें दो अवधारणाएं हैं- उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ बनाई गईं संपत्तियां और इनका समर्पण. बाबरी मस्जिद मामले में भी इसे मान्यता दी गई थी. उपयोगकर्ता द्वारा बनाए गए कई वक्फ सैकड़ों साल पहले बनाए गए थे. वे कहां जाएंगे? सीजेआई- क्या पहले के कानून में पंजीकरण की आवश्यकता थी? सिब्बल- हां.. इसमें कहा गया था कि इसे पंजीकृत किया जाएगा. सीजेआई- सूचना के तौर पर हम पूछ रहे हैं कि क्या पुराने कानून के तहत वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण का प्रावधान अनिवार्य था या सिर्फ ऐसा करने का निर्देश था? सिब्बल- ने कहा ‘Shall’ शब्द का इस्तेमाल किया गया था. CJI- केवल ‘Shall’ शब्द के प्रयोग से पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं हो सकता, क्या ऐसा नहीं करने पर कोई प्रावधान था? यदि ऐसा था तो क्या पंजीकरण अनिवार्य हो सकता है? तो हम आपकी इस दलील को दर्ज करेंगे कि पुराने अधिनियम के तहत पंजीकरण की आवश्यकता थी, लेकिन ऐसा नहीं करने पर क्या होगा इसका कोई प्रावधान नहीं था, इसलिए पंजीकरण न कराने पर कुछ नहीं होने वाला था.

कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें दीं. उन्होंने कहा कि संशोधन को वक्फ को एक ऐसी प्रक्रिया के माध्यम से नियंत्रित करने के लिए तैयार किया गया है जो कार्यकारी है. वक्फ को दान दी गईं निजी संपत्तियों को केवल इसलिए छीना जा रहा है क्योंकि कोई विवाद है. इस कानून को वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए डिजाइन किया गया है. स्टेट धार्मिक संस्थाओं की फंडिंग नहीं कर सकता. यदि कोई मस्जिद या कब्रिस्तान है तो स्टेट उसकी फंडिंग नहीं कर सकता, यह सब निजी संपत्ति के माध्यम से ही होना चाहिए. अगर आप मस्जिद में जाते हैं तो वहां मंदिरों की तरह चढवा नहीं होता, उनके पास 1000 करोड़, 2000 करोड़ नहीं होते. सीजेआई बीआर गवई ने कपिल सिब्बल की दलील पर कहा- मैं दरगाह भी गया, चर्च भी गया… हर किसी के पास यह (चढ़ावे का पैसा) है. सिब्बल ने कहा- दरगाह दूसरी बात है, मैं मस्जिदों की बात कर रहा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने दोनों पक्षों को दो-दो घंटे का समय दिया है. वे जैसे चाहें बहस करें. सीजेआई बीआर गवई ने कहा- मुझे खुशी हो रही है कि मेरे पास यहां केवल छह महीने बचे हैं. हाई कोर्ट में जज के रूप में मेरा कार्यकाल कहीं बेहतर था.

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