बिलासपुर नगर निगम का ऑडिटोरियम बना कपड़ा मार्केट और चौपाटी

क्षेत्रीय

बिलासपुर नगर निगम के ऑडिटोरियम परिसर ने अब कपड़ा मार्केट और चौपाटी का रूप ले लिया है। दरअसल, नगर निगम ने ऑडिटोरियम को किराए पर दे दिया है और ठेकेदार यहां अपनी मर्जी से किराया वसूल कर रहा है। यही वजह है कि ऑडिटोरियम में कोई सांस्कृतिक या कोई भी जैसे छोटा-मोटा आयोजन भी नहीं हो पा रहा है, जिससे शहर की कला प्रतिभाओं को मंच भी नहीं मिल रहा है। हैरानी की बात ये है कि किराए पर लेने के बाद भी ठेकेदार निगम का इसका किराया नहीं दे रहा है।

नगर निगम ने भाजपा शासन काल में 20 करोड़ से अधिक रुपए खर्च कर ऑडिटोरियम बनाया था, जिसका लोकार्पण 2017 में पूर्व सीएम डॉ .रमन सिंह ने किया था। ऑडिटोरियम बनाने का उद्देश्य यह था कि यहां सांस्कृतिक आयोजन वगैरह हो और यहां की कला प्रतिभाओं को मंच मिले। शुरुआत में लोकार्पण के बाद इसका संचालन नगर निगम खुद कर रहा था।

ऑडिटोरियम को किराए पर देने के कारण ही यहां छोटे-मोटे आयोजन नहीं हो पा रहा है। ठेकेदार ने अपनी आय बढ़ाने के लिए ऑडिटोरियम परिसर को ही किराए पर दे दिया है। किसी आयोजन में वह प्रतिदिन दस हजार रुपए तो किसी से 20 हजार रुपए तक किराया वसूल कर रहा है। यही नहीं यहां डोम लगाकर कपड़ों का सेल भी लगाया गया है। इसके साथ ही परिसर में गुपचुप, चाट, अंडा, चिकन, मटन के ठेले भी लगाए जा रहे हैं, जिनसे ठेकेदार किराया वसूली कर रहा है। ठेकेदार ने ऑडिटोरियम परिसर की जगह को किराए पर देकर बाजार में बदल दिया है।

ठेकेदार जयपाल मुदलियार कोरोना काल में किराया माफ करने के बाद भी नगर निगम को किराया नहीं दे रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि निगम को अब तक ऑडिटोरियम का किराए की राशि भी नहीं मिल पाई है। निगम ने लखीराम स्मृति ऑडिटोरियम के संचालन का ठेका तीन साल के लिए यानी 1 नवंबर 2020 से 31 अक्टूबर 2023 तक जयपाल मुदलियार को 51 हजार 233 रुपए मासिक किराए पर दिया है। ठेकेदार मुदलियार ने 2021 में कोरोना का हवाला देकर अप्रैल , मई , जून और जुलाई का किराया माफ करने एक आवेदन लगाया था। निगम ने MIC में प्रस्ताव पास कराकर ठेकेदार का चार माह का 2 लाख से अधिक का किराया माफ कर दिया था। इसके बाद भी ठेकेदार किराया नहीं दे रहा है।

इस मामले में पूर्व महापौर किशानर राय का कहना है कि बिलासपुर नगर निगम में ऑडिटोरियम, कामकाजी हॉस्टल और प्लेनेटोरियम बनाने का उद्देश्य लोगों को सुविधा देना है। इसमें ऑडिटोरियम की स्थिति जिस उद्देश्य के लिए बनाया गया है, उससे पूरी तरह अलग नजर आती है। जहां सामाजिक, सांस्कृतिक और रचनात्मक आयोजन होना चाहिए, वहां अब ठेले, खोमचे व अन्य व्यावसायिक उपयोग के लिए देकर नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है, इसकी जितनी निंदा की जाए कम है। समय रहते नगर निगम के अधिकारियों को इस दिशा में ध्यान देना चाहिए और जिस उद्देश्य के लिए भवन बनाए गए हैं, उसका उपयोग उसी उद्देश्य से होना चाहिए।