वाराणसी में एक तरफ नमाज के सजदे में सिर झुके, दूसरी ओर अद्भुत रामलीला.. 574 साल से निभाई जा रही परंपरा

वाराणसी : प्राचीन नगरी काशी की परंपराएं भी बेहद खास हैं जिनको आज भी निभाया जा रहा है. ऐसी ही परंपरा है, जो 500 वर्ष से ज्यादा पुरानी है. काशी की यह अद्भुत रामलीला देखकर कोई भी कह उठेगा, कि यह तो सिर्फ बाबा विश्वनाथ की नगरी में ही संभव है. काशी के लाट भैरव की रामलीला में ऐसी ही परंपरा निभाई जाती है. लाट भैरव मंदिर के चबूतरे पर जहां एक तरफ मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज पढ़ते हैं, वहीं, दूसरी तरफ रामचरित मानस की चौपाइयां गूंजती हैं. यह तस्वीर तब और गहरी छाप छोड़ जाती है, जब हिंदू-मुस्लिम दोनों एकजुट होकर इस परंपरा को कायम रखते हैं.

रामलीला समिति के मुख्य व्यास त्रिपाठी ने बताया कि श्रीलाट भैरव रामलीला समिति के जयंत नेत्र भंग की लीला हर बार अद्भुत होती है. इस दिन एक तरफ जहां मानस की चौपाइयां गूंजती हैं और लीला का संवाद आगे बढ़ता है. वहीं, दूसरी तरफ अजान के साथ मुस्लिम भाई अपनी नमाज पूरी करते हैं. लगभग 574 सालों से यह लीला जारी है. गुरूवार को इसका दसवां दिन था. लाट भैरव मंदिर के चबूतरे पर एक तरफ जहां मुस्लिम भाई नमाज पढ़ रहे थे, तो दूसरी तरफ रामलीला का मंचन किया जा रहा था.

रामलीला समिति के मुख्य व्यास त्रिपाठी ने बताया की लाट भैरव समिति सभी धर्म को साथ लेकर उनका सम्मान करते हुए इस लीला का मंचन करती आ रही है. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामचंद्र ने 10वें दिन की लीला में जयंत्र का नेत्र भंग किया. यह लीला वर्षों से इसी पीपल के पेड़ के नीचे चबूतरे पर होती आ रही है. जयंत नेत्र भंग की लीला वाले दिन मुस्लिम भाई इसी समय नमाज भी अदा करते हैं. शाम लगभग 5:45 पर दोनों धर्मों की अद्भुत एकजुटता देखने को मिलती है. आपसी सौहार्द के साथ इसका मंचन पूरा किया जाता है. लीला के दौरान नमाज पढ़ने आए हाजी औकास अंसारी का कहना है, कि लाट भैरव मंदिर और मस्जिद का विवाद भले ही बरसों से चल रहा है, लेकिन यहां पर सभी एकजुट होकर रहते हैं. रामलीला का मंचन हर वर्ष होता है और हम सभी मिलकर इसमें पूरा सहयोग करते हैं.

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *