पापुआ न्यू गिनी में आदिवासी जनजातियों के बीच हिंसा, 64 लोगों की मौत

अंतरराष्ट्रीय

प्रशांत क्षेत्र में भारत के करीबी दोस्त पापुआ न्यू गिनी में भीषण नरसंहार किया गया है, जिसने पूरी दुनिया को दहलाकर रख दिया है। पापुआ न्यू गिनी के उत्तरी पहाड़ी इलाकों में आदिवासी हिंसा में कम से कम 64 लोग मारे गए हैं। स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने प्रशांत राष्ट्र के हालिया इतिहास में इस घटना को सबसे बड़ा हत्याकांड करार दिया है। पोस्ट-कूरियर अखबार ने स्थानीय पुलिस का हवाला देते हुए कहा है, कि एंगा प्रांत के वापेनमांडा जिले में रविवार सुबह हत्याएं शुरू हुईं। जिस इलाके में हत्याएं हुई हैं, वो हाइलैंड्स क्षेत्र है, जिसका इतिहास खूनी रहा है, लेकिन बीते सालों में ये सबसे बड़ी हिंसा है। बताया जा रहा है, कि इस बार की हिंसा अंबुलिन और सिकिन जनजातियों के बीच भड़की थी। पुलिस ने पोस्ट-कूरियर को बताया है, कि उन्होंने सोमवार सुबह तक वेपेनमांडा की सड़क के किनारे, घास के मैदानों और पहाड़ियों से लगभग 64 शव बरामद किए हैं। आशंका जताई गई है, अभी कई शव और बरामद हो सकते हैं।

प्रतिद्वंद्वी गुटों ने लड़ाई में AK47 और M4 राइफल जैसी बंदूकों का इस्तेमाल किया है। मरने वालों की संख्या बढ़ने की आशंका है। वहीं, ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (एबीसी) ने कहा है, कि हिंसा में वही जनजातियां शामिल थीं, जो पिछले साल एंगा प्रांत में हुई झड़पों के लिए ज़िम्मेदार थीं, जिसमें 60 लोग मारे गए थे। पुलिस को घटनास्थल से ग्राफिक वीडियो और तस्वीरें मिलीं, जिसमें सड़क के किनारे और एक फ्लैटबेड ट्रक के पीछे ढेर में खून से लथपथ शव पड़े हुए थे। एजेंसी ने कहा, कि सेना ने क्षेत्र में लगभग 100 सैनिकों को तैनात किया है, लेकिन उनका प्रभाव सीमित है, सुरक्षा सेवाओं की संख्या और बंदूकें काफी कम हैं।

हाइलैंड्स क्षेत्र ने अवैध बंदूकों का कारोबार काफी बढ़ रहा है और एक-47 बंदूकों की भी धड़ल्ले से सप्लाई की जाती है, जिसकी वजह से इस इलाके में हिंसक घटनाओं के कम नहीं हो रही हैं।

इस क्षेत्र में झगड़े की सबसे बड़ी वजह जनजातियों के बीच प्रभुत्व और वर्चस्व की लड़ाई और जमीन विवाद की वजह से अकसर ये संघर्ष भड़कता रहता है, जिसमें ये समुदाय अपनी अपनी ताकत दिखाने की कोशिश करते हैं और बेहिसाब संख्या में लोगों का कत्ल करते हैं। पिछले साल पुलिस ने एंगा में तीन महीनों का लॉकडाउन भी लगाया था, जिसमें यात्राओं पर प्रतिबंध के साथ साथ कर्फ्यू भी शामिल था, लेकिन हिंसक घटनाएं सिर्फ लॉकडाउन तक ही बंद रहीं।