चांद पर कंपन कैसे हो रहा? बस्तियां बसाने वाले प्लान को लगा झटका

दो महीने से भी कम समय बाद नासा चार एस्ट्रोनॉट्स को चांद पर भेजने वाला है. 10 दिन का यह मिशन चांद पर उतरने और धरती पर सुरक्षित लौटने का होगा. क्रू तैयार है. इसके बाद 2027 का अलग प्लान है. इस बीच, एक स्टडी से चांद पर बस्ती बसाने के प्लान को शुरुआती झटका लगा है. हां, पता चला है कि चांद पर भी धरती की तरह भूकंप आ रहे हैं. इससे आप चांद पर कहीं भी ज्यादा दिन रहने के बारे में नहीं सोच सकते. चांद पर कंपन नया खतरा पैदा कर रहा है. बडे़ साइंटिस्ट थॉमस आर वाटर्स और यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के भूविज्ञानी निकोलस शमेर ने एक स्टडी में पाया है कि चांद पर बार-बार मूनक्वेक आते हैं और इस कारण अपोलो 17 के लैंडिंग वाले इलाके में बदलाव भी हुआ है. कुछ साइंटिस्टस इसकी वजह उल्कापिंडों का टकराना मान रहे थे.

साइंस एडवांसेज’ जर्नल में प्रकाशित स्टडी में वाटर्स और शमेर ने बताया है कि उन्होंने ली-लिंकन फॉल्ट के पास 3 की तीव्रता के झटकों का अनुमान लगाने के लिए चट्टानों के निशानों और भूस्खलन का अध्ययन किया. शमेर ने कहा कि उनके पास मोशन को मापने वाले उपकरण नहीं थे इसलिए उन्होंने सतह के सुरागों पर भरोसा किया.

वाटर्स ने आगाह किया है कि भविष्य में चांद पर बेस या कहें कि बस्तियां बसाने की योजना बनाते समय इन सक्रिय फॉल्ट पर गौर करना होगा क्योंकि ये एक्टिव हैं. वैसे उन्होंने यह भी कहा कि नुकसान पहुंचाने वाले भूकंप की रोजाना संभावना 20 मिलियन में से एक ही है, लेकिन लंबे समय तक रहने से जोखिम बढ़ जाता है. इसका मतलब यह है कि चांद पर रहने की जगहें सक्रिय फॉल्ट लाइन से काफी दूर बनानी होगी.

चांद पर ही टॉरस-लिट्रो वली में बड़े-बड़े पत्थर बिखरे हुए दिखे हैं. हो सकता है कि कुछ उल्कापिंडों के टकराने से निकले हों लेकिन कई पत्थरों के पास कोई क्रेटर के निशान नहीं हैं. सीनियर साइंटिस्टों ने इन पत्थरों का ऊंची ढलानों पर भी पता लगाया. पता चला कि उनके निशान टक्कर से बने मलबे के पैटर्न की बजाय भूकंपीय कंपन से ज्यादा मिलते हैं.

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