बालाघाट के आखिरी नक्सली का सरेंडर… स्टेन गन के साथ CRPF कैंप पहुंचा
मध्य प्रदेश के बालाघाट पर करीब 35 साल से लाल आतंक का कलंक था. बालघाट के राशिमेटा गांव से शुरु हुई लाल क्रांति कोरका स्थित सीआरपीएफ कैंप में दम तोड़ चुकी है. ऐसे में बालाघाट को हम पूरी तरह नक्सल मुक्त मान सकते हैं. दरअसल, केंद्र सरकार ने 21 मार्च 2025 को घोषणा की थी कि नक्सलवाद को जड़ से खत्म करना है. ऐसे में सुरक्षाबलों ने अपनी रणनीति बदली और एंटी नक्सल ऑपरेशन तेज कर दी थी. ऐसे में नक्सली बालाघाट के जंगलों में तो थे लेकिन सिर्फ अपने औचित्य की लड़ाई लड़ रहे थे. बालाघाट में सरेंडर करने वाले छोटा दीपक और रोहित के साथ नक्सलियों के औचित्य की भी लड़ाई खत्म हो चुकी है.
6 दिसंबर को केबी (कान्हा भोरमदेव डिवीजन) के कबीर सहित 10 नक्सलियों के सरेंडर के बाद बचे नक्सलियों की तलाश थी. फिर 7 दिसंबर को एमएमसी जोन (मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़) के प्रभारी रामदेर मज्जी ने भी 11 साथियों के साथ छत्तीसगढ़ के बकरकट्टा में सरेंडर किया था. इसके बाद सिर्फ तलाश थी रोहित और दीपक की, जो मलाजखंड दलम में सक्रिय थे. आखिरकार उसने अपने साथी के साथ ग्रामीण की मदद से बिरसा थाना क्षेत्र की मझुरदा पंचायत के अंतर्गत आने वाले ग्राम कोरका स्थित सीआरपीएफ के कैंप में जाकर दीपक और रोहित ने सरेंडर किया है.
आदर्श कांत शुक्ला ने लोकल 18 से फोन पर बातचीत करते हुए सरेंडर की पुष्टि की है. उन्होंने बताया कि दीपक बालाघाट के पालागोंदी गांव का रहने वाला था. वह तीनों राज्यों का मोस्ट वांटेड था और उस पर करीब 29 लाख रुपए का इनाम था. वह जीआरबी डिवीजन (गोंदिया राजनांदगांव बालाघाट) डिवीजनल कमेटी मेंबर यानी DVCM रैंक का नक्सली था. वह 1995 से दलम में सक्रिय हुआ था. वहीं रोहित पर 14 लाख का इनाम था. अब उसके सरेंडर करने के साथ ही बालाघाट को पूरी तरह नक्सल मुक्त कहा जा सकता है. 1 नवंबर को बीजापुर की रहने वाली सुनीता ओयाम ने बालाघाट के चौरिया कैंप में सरेंडर किया था. यह पहला सरेंडर था, जब से अगस्त 2023 में नई सरेंडर पॉलिसी बनी थी. उसी के साथ दो और नक्सली दलम छोड़ कर गए थे, जिसमें एक ने खैरागढ़ में सरेंडर किया था. लेकिन इसके बाद भी नक्सलियों के हौसले पस्त नहीं हुए थे.
हिडमा के मारे जाने के अगले दिन ही एक दुखद खबर आई थी. जब एक एंटी नक्सल ऑपरेशन के दौरान हॉक फोर्स में इंस्पेक्टर के पद पर पदस्थ आशीष शर्मा की शहादत हुई थी. इसके बाद नक्सलियों में खौफ का माहौल था और उन्होंने सरेंडर का रास्ता चुना था.
फिर एमएमसी जोन के प्रवक्ता अनंत उर्फ विकास नगपुरे ने महाराष्ट्र के गोंदिया में जाकर 10 साथियों के साथ सरेंडर किया था. फिर बकरकट्टा में नक्सली दंपत्ति धनुष और रोमा ने सरेंडर किया था. फिर जाकर कबीर ने अपने 9 साथियों के साथ बालाघाट में सरेंडर किया था लेकिन रामधेर की तलाश थी. उसके अगले दिन रामधेर ने 11 साथियों के साथ सरेंडर किया. ऐसे में 36 से ज्यादा नक्सलियों ने आखिर के दो महीनों में सरेंडर किया था.
