धरती की इस जगह पर छिपा है पानी का सबसे बड़ा ‘खजाना’, वैज्ञानिक भी रह गए हैरान
वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी के अंदर हमारी पैरों के नीचे करीब 1,609 किलोमीटर गहराई में एक ऐसा जल-भंडार छिपा है, जो प्रशांत महासागर से भी बड़ा हो सकता है. यह पानी लिक्विड रूप में नहीं बल्कि एक खास खनिज के भीतर बंद है और अरबों सालों से वहीं पर ही है.वैज्ञानिकों का दावा है, पृथ्वी की निचली परत जिसे मेंटल कहा जाता है, उसके अंदर पानी की बहुत बड़ी मात्रा मौजूद हो सकती है. यह पानी इतना ज्यादा हो सकता है कि प्रशांत महासागर भी इसके सामने छोटा लगने लगे. धरती के अंदर एक ऐसा छिपा हुआ महासागर हो सकता है जो अरबों सालों से ठोस चट्टानों के भीतर कैद पड़ा है. गैलेक्सी की रिपोर्ट की माने तो पहले माना जाता था कि पृथ्वी का केंद्र पूरी तरह सूखा है. हालांकि नई रिसर्च बताती है कि हमारा ग्रह शायद शुरुआत से ही इस अंदरूनी जल-भंडार के साथ बना था. ऐसा भी हो सकता है कि यह भंडार आज भी धरती के जिओलॉजिकल प्रोसेस को प्रभावित कर रहा हो.
साइंस जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च में वैज्ञानिकों ने बताया कि धरती की गहराई में पाया जाने वाला एक आम खनिज, ब्रिजमैनाइट पहले के अनुमान से कहीं ज्यादा पानी जमा कर सकता है. रिसर्च में यह भी सामने आया कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, यह खनिज और ज्यादा पानी अपने भीतर सोख लेता है. इससे यह संकेत मिलता है कि धरती का काफी पानी सतह पर आने के बजाय अंदर ही फंसा रह गया है.
यह ना दिखाई देने वाला जल-भंडार हमारे पैरों के नीचे लगभग 1609 किलोमीटर की गहराई में मौजूद है. इतनी गहराई तक पहुंचना फिलहाल इंसान के लिए संभव नहीं है इसलिए यह पानी आज भी पूरी तरह रहस्य बना हुआ है. आपको बता दें कि यह पानी किसी झील या समुद्र की तरह तरल रूप में नहीं है. ब्रिजमैनाइट के अंदर पानी हाइड्रोजन परमाणुओं के रूप में खनिज की तरह बंधा हुआ है. यह ठोस चट्टानों के अंदर छिपा हुआ एक महासागर जैसा है.
यह रिसर्च वेनहुआ लू के नेतृत्व में कार्नेगी इंस्टीट्यूशन फॉर साइंस के वैज्ञानिकों ने की. उन्होंने धरती के शुरुआती दौर की परिस्थितियों को समझने के लिए हाई-प्रेशर और हाई-टेम्परेचर प्रयोग किया. इन एक्सपेरीमेंट में 3,700 केल्विन से ज्यादा तापमान और 7 लाख एटमॉस्फियर से अधिक दबाव की स्थिति बनाई गई. जिससे निचले मेंटल की असली हालत को समझा जा सके.
