मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का फैसला… एक महिला को शादीशुदा पुरुष के साथ रहने से कोई नहीं रोक सकता

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि कोई भी कानून महिला को पहले से शादीशुदा पुरुष के साथ रहने से नहीं रोक सकता है। अदालत के अनुसार, जब महिला बालिग है, तो यह उसका निजी निर्णय है कि वह किसके साथ रहे। इस फैसले ने परिवार, शादी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े कई कानूनी और सामाजिक मुद्दों को जन्म दिया है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब महिला बालिग होती है, तो उसके पास यह अधिकार है कि वह अपनी पसंद के पुरुष के साथ रहे। यह निर्णय महिला की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों का सम्मान करता है। अदालत ने यह भी कहा कि यदि कोई महिला शादी करती है, तो केवल पहली पत्नी ही दूसरी शादी के लिए मामला दर्ज कर सकती है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि नैतिकता से जुड़े मामलों में कोई भी तर्क नहीं दिया जा सकता। अदालत का कहना था कि यह मामला किसी भी प्रकार की अपराधिता से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह एक निजी फैसला है, जिसे महिला ने अपनी स्वतंत्र इच्छा से लिया है। न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन द्वारा लिखे गए आदेश में हाईकोर्ट ने यह निर्विवाद तथ्य स्वीकार किया कि ‘X’ एक वयस्क है। पीठ ने व्यक्तिगत मामलों में उसकी स्वायत्तता पर जोर दिया। कोर्ट ने कहा कि उसके पास अपना दिमाग है और उसे यह निर्णय लेने का अधिकार है कि वह किसके साथ रहना चाहती है, चाहे उसका निर्णय सही हो या गलत।
याचिकाकर्ता के तर्क पर कि पुरुष विवाहित है तो इस रिश्ते में कोई कानूनी बाधा आएगी? इस पर न्यायालय ने फैसले में कहा कि जहां तक उस व्यक्ति के विवाहित होने का सवाल है, जिसके साथ वह रहना चाहती है, ऐसा कोई कानून नहीं है जो उसे उक्त व्यक्ति के साथ रहने से रोकता हो। जबलपुर हाईकोर्ट के सामने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में आरोप था कि एक महिला एक शादीशुदा पुरुष के साथ रह रही है, जबकि उसे अपने माता-पिता के पास रहना चाहिए था। अदालत ने यह भी पाया कि महिला बालिग है और उसने अपनी मर्जी से यह निर्णय लिया है कि वह इस व्यक्ति के साथ रहेगी, भले ही वह पहले से शादीशुदा हो।