ISS के बाद कौन होगा अंतरिक्ष का ‘नया राजा’? दुनियाभर में मची खलबली!

International Space Station का मिशन खत्म होने के बाद भारत और रूस ने अपने-अपने स्पेस स्टेशनों को एक ही कक्षा में रखने का फैसला किया है. इससे दोनों देशों के अंतरिक्ष यात्री एक-दूसरे के स्टेशन पर आसानी से जा सकेंगे, साथ ही मिलकर वैज्ञानिक प्रयोग कर पाएंगे. रूस की अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस के प्रमुख दमित्री बकानोव ने अपने भारत दौरे के दौरान इस साझेदारी की घोषणा की है. भारत का आने वाला स्पेस स्टेशन BAS और रूस का ROS दोनों ही 51.6 डिग्री वाले ऑर्बिट में चक्कर लगाएंगे यह ISS की कक्षा भी है. यह कदम दोनों देशों के अंतरिक्ष सहयोग को अलग लेवल पर ले जाएगा. दोनों देशों के बीच नए इंजन, मानव मिशन, ट्रेनिंग और टेक्नोलॉजी पर भी काफी बाते हुई है. भारत और रूस ने यह फैसला किया है कि उनके भविष्य के स्पेस स्टेशन एक ही ऑर्बिट में साथ ही काम करेंगे. यह कक्षा 51.6 डिग्री झुकाव वाली है और बता दें कि ISS भी इसी कक्षा में घूमता है. इसका मतलब यह हुआ कि भारतीय और रूसी अंतरिक्ष यात्री बिना ज्यादा ईंधन खर्च किए एक-दूसरे के स्टेशन पर आसानी से जा पाएंगे, इससे एक साथ रिसर्च और इमरजेंसी सहायता भी आसानी से मिल पाएगी.

रूस पहले अपने रशियन ऑर्बिटल स्टेशन (ROS) को 96 डिग्री वाले ऑर्बिट में बनाने की तैयारी कर रहा था. हालांकि अब भारत के साथ साझेदारी को देखते हुए इसे 51.6 डिग्री पर शिफ्ट करने का फैसला लिया गया है. बकानोव ने बताया है कि यह बदलाव दोनों देशों के लिए फायदेमंद होगा और लंबे समय तक सहयोग बढ़ाने में सहयता मिलेगी.

रूस का ROS (Russian Orbital Station) एनर्जिया स्पेस सेंटर ROS के विकास में मदद करने वाला है. इसका डिजाइन मॉड्यूलर होगा यानी जरूरत के हिसाब से नए मॉड्यूल जोड़े जा सकेगा. डीप स्पेश मिशन और नए स्पेसक्राफ्ट बनाने में इसका इस्तेमाल होगा. वहीं भारत का BAS (Bharatiya Antariksh Station) ISRO इसे 2035 तक पूरा करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है. बता दें कि हाल ही में भारत ने सफल Docking टेक्नोलॉजी हासिल की है जिससे BAS बनाना और आसान हो गया है.

यह कक्षा धरती के 51.6 डिग्री उत्तर-दक्षिण अक्षांश को कवर करती है. इसी कारण रूस के Soyuz रॉकेट आसानी से स्टेशन तक पहुंच पाएंगे, साथ ही भारत के गगनयान मिशन के लिए डॉकिंग आसान होगी और दोनों देशों के साझा प्रयोग और मिशन बेहतर तरीके से हो सकेंगे. रूस का ROS का पहला वैज्ञानिक मॉड्यूल 2028 तक लॉन्च होगा वहीं 2030 तक चार मुख्य मॉड्यूल जुड़ जाएंगे. 2031 से 33 के बीच स्टेशन और बड़ा किया जाएगा. बता दें कि अंगारा-A5M रॉकेट से मॉड्यूल भेजे जाएंगे. देखा जाए तो भारत का BAS 2035 तक पूरा होने का लक्ष्य रखा गया है. बताते चलें की भारत चौथा देश बन चुका है जिसने स्पेस डॉकिंग तकनीक हासिल की है. आने वाले सालों में इसके मेन मॉड्यूल डिजाइन और टेस्टिंग पर काम देखने को मिलने वाला है.

ISS का मिशन 2030-31 में खत्म होना तय है. रूस पहले ही बता चुका है कि वह आगे ISS के साथ नहीं रहने वाला है, इसलिए भारत-रूस का नया स्पेस सहयोग आने वाले समय में ISS के बाद की सबसे बड़ी साझेदारी बनने जा रहा है. भारत का पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट रूस की मदद से लॉन्च हुआ था. वहीं गगनयान मिशन के लिए भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों की ट्रेनिंग भी रूस में हुई थी. चंद्रयान-2 में भी रूस की अहम भूमिका रही थी. इस नए समझौते के बाद विशेषज्ञ मानते हैं कि 2030 के दशक में अंतरिक्ष में भारत-रूस का एक स्पेस कॉरिडोर बन जाएगा, जो दोनों देशों के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम होने वाला है.

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